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Monday, September 5, 2016

कुछ शब्द "गुरूजी" के लिए 🙏🙏

8वीं पास करके पहली बार सरकारी कॉलेज में एडमिशन लिया था.
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सरकारी नियमों के अनुसार एडमिशन के मुताबिक 1 जुलाई से ही क्लासेज स्टार्ट हो जाती हैं
चूंकि पहली बार सरकारी कॉलेज में गया था और उस समय हम लोगों के जेहन में हव्वा भी था कि यहाँ गुंडई होती है और लड़के गुटों में चलते हैं इस वजह से डरते डरते मुझे पूरा हफ्ता हो गया था.
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पापा और मम्मी के डांटने पर मुझे आखिर 1 हफ्ते बाद कॉलेज जाना ही पड़ा. कॉलेज का पहला दिन किसी मित्र की बात छोडो दूर दूर तक कोई जान पहचान का भी न था.
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8 दिन बीत चुके थे फिर भी मैं किताब न लेकर गया था.. मैं सबसे आखिरी सीट पर किताब न होने की वजह से मुंह छुपा कर बैठा हुआ था...पहले पीरियड में सर आये बिना किसी से कुछ पूंछ तांछ किये पहले आधे घंटे व्यतीत किये इसके बाद थोड़ा बहुत पढ़ाया फिर दूसरा पीरियड आ गया वो सर चले गए...और अब बारी थी दुसरे सर की वो आये और वैसे ही चले गए....
        और अब तीसरा पीरियड था हमारे वर्ग के अध्यापक (कॉमर्स के) जिन्हें हम सब और पूरा कॉलेज ही "गुरूजी" कह कर पुकारता था, क्लास में आये और बड़े सलीके से बुक्स टेबल पर रखी, मैंने अभी तक 2 अध्यापकों को देख चुका था वो आये और हम बच्चों से ही किताब मांगी पर "गुरूजी" का नियम ही अलग था वो स्वयं अपनी किताब अपने पास रखते थे....उन्होंने एक नजर पूरी क्लास को देखा और एक हलकी मुकुराहट के साथ उन्होंने बिना किसी से कुछ पूंछे किताब खोली उसमे से कुछ पन्ने पलटे और और चौक उठा कर ब्लैकबोर्ड पर लिखना शुरू कर दिया...फिर उन्होंने सबसे कहा "वही पन्ना खोल से जहाँ से कल ख़त्म किया था " 👆पूरी क्लास किताब खोल कर पन्ने टटोलने लगी ...इसके बाद "गुरूजी" ने सबकी ओर निगाह फेरी और मैं सीट पर दुबका हुआ बैठा था उन्होंने दूर से मुझे देखा और मेरे पास आये...आँखों में देखकर बोला "किताब कहाँ है ?? 🤔😳
          मैं बोला गुरु जी अभी तो नहीं ली मैंने,,,बस इतना बोलना था मेरा और गुरु जी ने मेरा बायां कान जोर से पकड़ा और सीट पर से पूरा जोर लगाकर मुझे अपनी जगह से हिला डाला और अपने अंदाज में पूरी क्लास से कहा "मरा कहीं का बच्चा किताब ही नहीं लाता और टीचर पढ़ाये पढ़ाये मरा जाता है, टीचर पढ़ाये तो पढ़ाये कैसे " मैं पूरी बात उन्हें समझाऊं उससे पहले ही उन्होंने मेरे कान का बीमा और मेरा इंट्रोडक्शन पूरी क्लास में कुछ इस तरह कर डाला...उस दिन क्लासेस ख़त्म हुईं तो दिल में सरकारी स्कूल वाला हव्वा और बढ़ गया और उससे ज्यादा तो मुझे "गुरूजी" पर बहुत गुस्सा आया और उन्हें बहुत कोसा 😥😥😣😣...
                  लेकिन जैसे जैसे दिन बीते और हमें छह,आठ महीने हुए धीरे धीरे क्लास से बच्चे बंक मारते गए और 60 बच्चों की क्लास में कभी 20 कभी 25 तो कभी 10 ही स्टूडेंट्स रहते और टीचर्स आते क्लास में पूरे बच्चे न देखकर वापस स्टाफ रूम चले जाते, पर गुरु जी चाहे 5 ही बच्चे आये हों वो ठीक हमेशा की तरह आते और वही क्रिया दोहराते...पर हाँ उस समय मेरे पास किताब आ गयी थी..😃मैंने भी कॉलेज के 2 साल कभी बंक नहीं मारा और जब भी जाता गुरु जी ठीक उसी तरह हमें पढ़ाते..इस तरह जिन्हें मैंने कभी कोसा था उन्होंने हमारे दिल में अपने लिए जगह बना ली थी...जब क्लास में 10 15 बच्चे होते थे तो हम यों ही टहलते रहते थे लेकिन जब गुरु जी का पीरियड होता था तो मैं भी उन्हें इग्नोर न करता था....
                     मेरी पढाई में कई अध्यापक आये कुछ स्कूल में, कुछ कॉलेज में तो कुछ कोचिंग में आये लेकिन उन सबमे "गुरूजी" सबसे अलग स्थान रखते हैं.....मुझे हमेशा इस बात जी ग्लानि रहेगी की "गुरूजी" के सब्जेक्ट में कभी उस तरह परफॉरमेंस न दे सका जिस तरह उनका पढ़ाने का सलीका था...अब वो समय वापस तो न ला सकूंगा...ऐसा नहीं है कि आज "शिक्षक दिवस" है तो आप मुझे याद आये..जब भी कहीं किसी शिक्षक की बात होती है तो आपका चेहरा पहले सामने आता है और आज जब मैं अपनी "होम क्रेडिट" कंपनी में नौकरी की ट्रेनिंग में गया और वहां के ट्रेनर "प्रफुल्ल सर" की कर्तव्यनिष्ठा,वही आपके जैसा आचरण और सिखाने की प्रबलता को देखकर आप बिलकुल समक्ष आ गए और ये तो आपका ही दिन है तो आप शायद मुझे भूल जाओ पर हाँ आप मुझे जरूर याद रहोगे 🙏🙏 स्कूल के दिनों में आपका आज्ञाकारी तो न बन सका पर हाँ आपकी कर्तव्यनिष्ठा का फैन जरूर हूँ अब तक.....🙂🙂
                                                 आपका नादान शिष्य
                                                  अनूप आर्यन 🙂

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