आज एक जुलाई है.
हाँ मुझे पता है की आपको भी पता होगा की आज एक जुलाई है.
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दरअसल मुझे भी अभी पता चला की आज 1 जुलाई है क्योंकि..
आज काफी दिन बाद या यूं कहिये 2 महीने बाद अपनी सिस्टर को स्कूल तक छोड़ने गया.
मम्मी ने कल उससे कहा की मत जाओ कल स्कूल....उसके मुह से जो निकला उसे सुनकर बचपन की याद आ गयी.....छुट्टी का नाम सुनते ही हैरानी भरी नज़रों से मम्मी से कहा "अच्छा !!! स्कूल के पहले दिन ही छुट्टी न जाएँ, 🤓🤓.. और पूरे साल भर तो खुद ही घर पर न बैठने देती हो"
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बचपन में हम सब भी न....होली की छुट्टियों के बाद एग्जाम्स की बहुत चिंता होती थी होती भी क्यों न साल भर तो कायदे से पढाई होती न थी और परीक्षा के पास आते ही लग जाते थे एकदम शांत और सभ्य बच्चों की तरह पढाई में.
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टेंशन से भरी परीक्षाओं में अंतिम परीक्षा के दिन चेहरे पर एक विजयी मुस्कान रहती थी की आज "लंका" फ़तेह कर लेंगे..और इसके बाद छुट्टियों में दादी और नानी के यहाँ "गर्मियों" का आनंद लेंगे.
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पहले जब हम कानपुर में रहते थे वहां एक पार्क रहता था जहाँ हम सब जब ज्यादा गर्मी होती थी और बिजली दूर दूर तक नदारद रहती थी तब पूरे मोहल्ले के हम सब बच्चे और हाँ बड़े भी मिलकर लूडो, कैरम खेल कर गर्मी बिताते थे....पर अफ़सोस अब न तो किसी के पास समय है गर्मियों की छुट्टियां "दादी" और "नानी" के यहाँ बिताने का और न ही पार्क और पेड़ ही बचे हैं जिनके नीचे बैठकर गर्मियों की कुछ दोपहर जिनमे हमारे पास समय रहता है, बिता सकें.....
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और आखिरकार जब गर्मी की छुट्टियां समाप्त होती थीं...और कैलेंडर में जून के पन्ने का लास्ट अंक आता था तो एक तरफ गम रहता था की लो अब फिर से लिखना पड़ेगा, याद करना पड़ेगा, होम वर्क करना पड़ेगा और हाँ होम वर्क न कर पाने की दशा में मम्मी और मैम दोनों से मार खाना,,,खैर इन सब के अलावा एक तरह की ख़ुशी भी रहती थी जेहन में ...."नयी नयी किताबों से मिलने की ख़ुशी" जिनमे से मंजरी, इतिहास और "भारत के महान व्यक्तित्व" मेरी ख़ास रहती थीं....किताबों से मेरा लगाव बचपन से ही रहा है फिर वो चाहे "नंदन, बालहंस, और कॉमिक्स" ही क्यों न हों.....पढ़ने के शौक तो बहुत था उस समय......और हाँ आज जब मैं ये आप सबको लिख कर बता रहा हूँ तो ये भी बता दूं की कक्षा एक से लेकर इंटरमीडिएट तक मैंने कोई एक कोर्स का भी होम वर्क और न ही कोई फेयर कॉपी बनाई जिससे की एग्जाम्स के समय टीचरों के मुताबिक रट्टा मारकर पास हो सकें.....मैंने अपनी पूरी पढाई रट्टा न मारने के बजाय पूरी एन्जॉय की,,,, क्लासेज, फ्रेंड्स, और स्कूली वातावरण सब कुछ.....हाँ समझ सकता हूँ की हो सकता है आप मुझे पागल समझ रहे हों....पर मैं तो ऐसा ही हूँ :) :)
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खैर अभी बचपन की कमी अभी पूरी कर रहा हूँ..
तब नहीं लिखता था पर अब लिख रहा हूँ ✍✍✍
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और हाँ "एक जुलाई" मुबारक हो :) :)
Aryanofficial01.blogspot.in
#Aryanofficial01
हाँ मुझे पता है की आपको भी पता होगा की आज एक जुलाई है.
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दरअसल मुझे भी अभी पता चला की आज 1 जुलाई है क्योंकि..
आज काफी दिन बाद या यूं कहिये 2 महीने बाद अपनी सिस्टर को स्कूल तक छोड़ने गया.
मम्मी ने कल उससे कहा की मत जाओ कल स्कूल....उसके मुह से जो निकला उसे सुनकर बचपन की याद आ गयी.....छुट्टी का नाम सुनते ही हैरानी भरी नज़रों से मम्मी से कहा "अच्छा !!! स्कूल के पहले दिन ही छुट्टी न जाएँ, 🤓🤓.. और पूरे साल भर तो खुद ही घर पर न बैठने देती हो"
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बचपन में हम सब भी न....होली की छुट्टियों के बाद एग्जाम्स की बहुत चिंता होती थी होती भी क्यों न साल भर तो कायदे से पढाई होती न थी और परीक्षा के पास आते ही लग जाते थे एकदम शांत और सभ्य बच्चों की तरह पढाई में.
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टेंशन से भरी परीक्षाओं में अंतिम परीक्षा के दिन चेहरे पर एक विजयी मुस्कान रहती थी की आज "लंका" फ़तेह कर लेंगे..और इसके बाद छुट्टियों में दादी और नानी के यहाँ "गर्मियों" का आनंद लेंगे.
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पहले जब हम कानपुर में रहते थे वहां एक पार्क रहता था जहाँ हम सब जब ज्यादा गर्मी होती थी और बिजली दूर दूर तक नदारद रहती थी तब पूरे मोहल्ले के हम सब बच्चे और हाँ बड़े भी मिलकर लूडो, कैरम खेल कर गर्मी बिताते थे....पर अफ़सोस अब न तो किसी के पास समय है गर्मियों की छुट्टियां "दादी" और "नानी" के यहाँ बिताने का और न ही पार्क और पेड़ ही बचे हैं जिनके नीचे बैठकर गर्मियों की कुछ दोपहर जिनमे हमारे पास समय रहता है, बिता सकें.....
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और आखिरकार जब गर्मी की छुट्टियां समाप्त होती थीं...और कैलेंडर में जून के पन्ने का लास्ट अंक आता था तो एक तरफ गम रहता था की लो अब फिर से लिखना पड़ेगा, याद करना पड़ेगा, होम वर्क करना पड़ेगा और हाँ होम वर्क न कर पाने की दशा में मम्मी और मैम दोनों से मार खाना,,,खैर इन सब के अलावा एक तरह की ख़ुशी भी रहती थी जेहन में ...."नयी नयी किताबों से मिलने की ख़ुशी" जिनमे से मंजरी, इतिहास और "भारत के महान व्यक्तित्व" मेरी ख़ास रहती थीं....किताबों से मेरा लगाव बचपन से ही रहा है फिर वो चाहे "नंदन, बालहंस, और कॉमिक्स" ही क्यों न हों.....पढ़ने के शौक तो बहुत था उस समय......और हाँ आज जब मैं ये आप सबको लिख कर बता रहा हूँ तो ये भी बता दूं की कक्षा एक से लेकर इंटरमीडिएट तक मैंने कोई एक कोर्स का भी होम वर्क और न ही कोई फेयर कॉपी बनाई जिससे की एग्जाम्स के समय टीचरों के मुताबिक रट्टा मारकर पास हो सकें.....मैंने अपनी पूरी पढाई रट्टा न मारने के बजाय पूरी एन्जॉय की,,,, क्लासेज, फ्रेंड्स, और स्कूली वातावरण सब कुछ.....हाँ समझ सकता हूँ की हो सकता है आप मुझे पागल समझ रहे हों....पर मैं तो ऐसा ही हूँ :) :)
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खैर अभी बचपन की कमी अभी पूरी कर रहा हूँ..
तब नहीं लिखता था पर अब लिख रहा हूँ ✍✍✍
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और हाँ "एक जुलाई" मुबारक हो :) :)
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