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Wednesday, August 17, 2016

मिशन रियो 🏅🏅

17 अगस्त 8:35 PM
आज सुबह जल्दी उठ गया था.
नींद लगभग उचट ही चुकी थी...सुबह के 4:30 बजे थे और दोबारा सो जाना नामुमकिन लग रहा था सो इन्टरनेट खोल कर बैठ गया....पहले व्हाट्सएप का नोटिफिकेशन फिर इमेल्स, फेसबुक और लास्ट में गूगल एप्प का नोटिफिकेशन "25 olympic Medals events Today" जैसे ही ये नोटिफिकेशन देखा तो मन में आशा की लहर उठी की शायद आज कोई चमत्कार हुआ हो और एक मैडल हमारी झोली में गिरा हो, नंबर एक से शुरुआत की अमेरिका खड़ा मुस्कुरा रहा था और चीन तीसरे नंबर पर हमें चिढा रहा था
"हमें" हाँ हमें से याद आया मैं इन सबको छोड़कर अपने "ट्राई कलर " को ढूंढने लग गया ....एक से लेकर मैंने पचास अंकों को भी पर कर लिया लेकिन तिरंगा कहीं न दिखाई पड़ा और अब अंकों की सूची का अंत भी हो गया जहाँ "संयुक्त अरब अमीरात" सूची के अंत में खड़ा था
और अब alphabatical सूची के आधार पर भारत दिखाई दिया
गोल्ड- 0
सिल्वर- 0
ब्रॉन्ज- 0
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9 दिन के मेडल्स के सूखे के बाद 10वां दिन भी सूखे के साथ ही शुरुआत होता दिख रहा था और भारत के कॉलम के सामने मेडल्स टैली में अब तक शून्य ही दिख रहा था

           रियो ओलिंपिक अब तक पूर्ण रूप से असंभावनाओं से भरा रहा ।
भारत के प्रमुख प्रतिनिधित्व ख़िलाड़ी - सानिया मिर्ज़ा, अभिनव बिंद्रा, गगन नारंग, ज्वाला गुट्टा, साइना नेहवाल, दीपा कर्माकर और यहाँ तक की आर्चरी में पिछले वर्ष की विश्व की नंबर 1 रहीं दीपिका कुमारी भी क्वार्टर फाइनल राउंड में ही बाहर हो गईं। जिनके समर्थन में उनकी साथी बोम्बाल्या देवी ने आगे की कमान संभाली लेकिन वो भी अगले दौर में ही बाहर हो गईं। अब तक दस दिन के खेल पूरा हो जाने के बावजूद भारत की झोली में अब तक एक भी "मैडल" नसीब नहीं हुआ।। बीजिंग ओलिंपिक की स्टार रहे अभिनव बिंद्रा, गगन नारंग भी टॉप 10 की रैंक भी न हासिल कर पाए जिन्होंने पिछली बार आसमान छुआ था और जिनसे काफी आस लगा रखी थी भारतीयों ने उनसे भी निराशा ही हाँथ लगी ।
      रियो ओलिंपिक, बीजिंग ओलिंपिक के स्टार रहे लगभग सभी भारतीय खिलाड़ियों के लिए विलेन साबित हो रहा है. रियो ओलिंपिक में जाने वाली भारतीय सदस्यों की टीम अब तक की ओलिंपिक में भारतीय सदस्यों की ज्यादा सदस्यीय वाली टीम रही जिनमे 119 सदस्य उपस्थित रहे, परंतु 119 सदस्यों के होने के बावजूद एक भी खिलाड़ी ब्रॉन्ज मैडल तक हासिल नहीं कर पाया....
             हॉकी में महिलाओं की शर्मनाक हार के बाद पुरुष हॉकी टीम के पास हॉकी में बदला लेने का सुनहरा मौका था लेकिन जीत के साथ शुरुआत होने के बाद टीम लड़खड़ा गयी और क्वार्टर फाइनल के राउंड में बाहर हो गयी ।
                  हर बार की तरफ इस बार भी यूनाइटेड स्टेट्स 84 पदकों के साथ मेडल्स टैली में सर पर ताज लिए पहले नंबर पर विराजमान है..और यहाँ तक की जमैका, केन्या, ट्यूनीशिया और इंडोनेशिया जैसे देश भी अपने देश की जनसँख्या के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और अपने देश के लिए गोल्ड, सिल्वर, और ब्रॉन्ज मैडल हासिल किया परन्तु आबादी के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर पर काबिज सवा सौ करोड़ आबादी वाला हमारा भारत अब भी एक गोल्ड मैडल की राह ताक रहा है।।
          शायद हमें अपने पडोसी चीन से कुछ सीखने की जरूरत है जो कि हमसे कुछ ही ज्यादा आबादी वाला पडोसी देश है, ओलिंपिक टैली में तीसरे स्थान पर विराजमान है- कहीं न कहीं हम सभी इन सबकी वजह हैं और हमारा सिस्टम भी इसमें पूर्ण रूप स सहभागिता रखता है जहाँ खिलाड़ियों को उनकी जरूरत के हिसाब से सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं और तैयारियां अधूरी रह जाती हैं जिससे उनकी प्रैक्टिस और उनका रुझान कम होता जाता है और तो और हम भारतीयों की नकारात्मकता जिनमे से अधिकतर खुद को सर्वश्रेष्ठ दर्शाते हैं...गली नुक्कड़ों में, न्यूज़ पेपर्स में, न्यूज चैनल्स में अपनी अपनी विचारधारा व्यक्त करते रहते हैं और सबका फैसला यही करते हैं कि कौन कब और क्या गलती करता है..
वो खिलाड़ियों का मनोबल बनाये रखने के बजाय राजनीति करते हैं........असल में भारत में खिलाड़ियों की कमी नहीं है, हमारे देश में दुनिया का कोई ऐसा खेल नहीं जिसका खिलाड़ी मौजूद न हो ...ऐसे अनगिनत खिलाड़ी हमारे गली मोहल्लों, नुक्कड़ों और सड़कों पर खेलते हुए पाये जाते हैं और उन सभी का सपना अपने राष्ट्र, अपने देश के लिए खेलने का होता है लेकिन वो सब भी सिर्फ सपना देखते रह जाते हैं.....ओलिंपिक में गए हुए लगभग हर खिलाड़ी गरीब परिवारों से हैं जो प्रतिभाशाली हैं... लेकिन सभी उनकी तरह भाग्यशाली भी नहीं होते....अमेरिका और लगभग सभी विकसित देश खेलों की ओर बढ़ावा देते हैं और सभी को खेलने का अवसर भी देते हैं शायद इसी वजह से ओलिंपिक के इतिहास में हमेशा से ही मेडल्स को लेकर अमेरिका का दबदबा रहा है....माना कि वे विकसित देश हैं लेकिन यदि प्रसाशन और सिस्टम अपना दिमाग "विकसित" कर ले तो एक न एक दिन हमारा देश भी "विकसित" देशों की श्रेणी में आएगा...और मेडल्स टैली में टॉप पर न सही टॉप 10 में तो जरूर आ सकेंगे
             खैर रियो ओलिंपिक भारत और भारतीय खिलाड़ियों के लिए एक बुरे सपने की तरह रहा। और आशा करता हूँ की जब हम सभी इस सपने से जागें तो इसे सपने का सबक समझकर इससे बेहतर बनने की कोशिश करेंगे
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Aryanofficial01.blogspot.in

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