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Friday, March 31, 2017

इनरलाइन पास By उमेश पन्त सर



डिअर उमेश पन्त सर
       बहुत खूब था आपका यह यात्रा वृतांत, जितना लिखा है शायद उतने शब्द भी कम हैं. सच में यात्राएं कितना सुकून देती हैं- और आपकी यह यात्रा सच में बहुत खूबसूरत रही थी.
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दिल्ली के बारे में जो आपने कहा वो बिलकुल सही है. हालांकि दिल्ली के बारे में काफी लंबा अनुभव नहीं परंतु एक दिन के सफर में काफी कुछ जान लिया था इस शहर के बारे में. आप इस शहर में रहते हुए भी एक दूसरे से अंजान रहते हैं, किसी को भी आपसे मतलब नहीं होता यहाँ.....इंसानों से परे यहाँ तो लोग रास्ते तक नहीं जानते किसी को पथ प्रदर्शित करने के लिए...लगभग 5 घंटे में एक व्यक्ति आधी दिल्ली घूम सकता है..परंतु उस दिन मैं और Ankit लगभग 9 घंटे आधी दिल्ली पैदल ही घूमे....खैर..बताऊंगा तो यह कहानी भी बहुत लंबी हो जायेगी
     
     ज़िन्दगी की भाग दौड़, नौकरी, बंद पड़ी घडी की सुई की तरह बोरिंग एक ही जगह ज़िन्दगी बिता देना सच में यह बहुत दुखद है उन लोगों के लिए जो "यात्राएं" नहीं करते, यह ज़िन्दगी यात्राओं के बिना कितनी नीरस है.....आपकी यह यात्रा कितनी रोचक थी, बिलकुल सचित्र वर्णित किया आपने सब कुछ, एक दम लाइव आँखों के सामने सा आ गया सब कुछ...दिल्ली से आदि कैलास, सच में बहुत अद्भुत रहा होगा ॐ पर्वत, आदि कैलास और रास्ते की दुर्गम चढ़ान-उतरान का दृश्य.....सच में अनमोल था आपका वह इनरलाइन पास 😃.
          हालांकि आगे दुर्गम रास्ते भी मिले आपको और आपने उसे पार भी किया, पर यही तो एक ख़ास पड़ाव था आपकी यात्रा का....यात्रा वृत्तांत में और ख़ास बात थी जैसे की आपने वर्णित किया था कि यात्राओं के बीच मिलने वाले अंजान लोग, जिनसे हम पहले कभी मिले भी न थे उनसे बिलकुल करीबी जैसा रिश्ता बन जाता है, बिलकुल ठीक यही हमारी हाल ही कि यूपी के मिर्ज़ापुर यात्रा में हुआ जब हम सभी अपने मित्र की शादी में शरीक होने गए थे, रात में वापसी के दौरान लौटना मुश्किल हो गया था तो कैसे रास्ते में मिले उस अजनबी ठाकुर परिवार ने हम 8 लोगों की टीम को 5 स्टार होटल से भी बढ़कर सुविधाएं दी थी...सच में इतना बड़ा ह्रदय लाते कहाँ से हैं ये अजनबी लोग जो मुसीबत के वक़्त फरिश्ता बनकर आते हैं और बिना चूं किये हमारे लिए निश्वार्थ भाव से इतना कुछ कर देते हैं.
         
        आपकी यात्रा में आपके साथ आपके मित्रों की भी सराहना करनी होगी, खासकर रोहित जी की...कितना साथ दिया था उन्होंने आपका, यात्राओं में मित्रों की भी अहम् भूमिका रहती है जैसे हमारे मित्र पं शुभम, Sharad, Ankit, Amar और सुनील...हम भी कुछ यूं ही गुजरे थे...खैर हमारी यात्रा कभी इतनी लंबी और रोचक नहीं रही पर मित्रों के साथ यह रोचक हो जाती है और यात्रा का आनंद दुगना हो जाता है....
                 नैल के जंगलों में गुजरी उस भयावह रात का वर्णन, सच में बहुत भारी रही होगी वह रात...और हाँ मुझे ख़ुशी मिली की आपको आपका बैग वापस मिल गया, उन दोनों बच्चों ने तो कमाल ही कर दिया था....बीच में मुझे अफ़सोस हुआ था कि आपका बैग आपसे दूर हो गया, पर नियति की चाह थी आपकी कहानी उन्हें सुननी थी और आपको आपका बैग मिलना था...पढ़ते पढ़ते मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी थी जैसे मुझे मेरा बैग मिल गया हो...पर कन्फ्यूज्ड हूँ इस बात को लेकर की आपका कैमरा कहाँ था इस बीच, समय मिले तो बताइयेगा कभी.
                आशा करता हूँ की कभी हमें भी सौभाग्य मिलेगा आपसे मिलने का और ऐसी यात्रा का, स्पेशली अगर आदि कैलास का कभी सफर रहा तो आपकी "इनरलाइन पास" साथ रहेगी...और हाँ सर "ह्यांकी" जी से जरूर मिलना चाहूंगा...शीर्षक उनसे ही मिला है आपकी पुस्तक का.
          अब अंत में बहुत ख़ुशी हुई आपका यह वृत्तान्त पढ़कर और आशा करता हूँ की आगे भी कुछ अच्छा पढ़ने के मिलेगा आपसे...और एक यात्रा...और कुछ 100 पन्ने... आगे की यात्राओं के लिए शुभेक्षाएँ 💐💐

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