मेरी ज़िंदगी का एक बड़ा सा हिस्सा मैंने इस डर में गुजार दिया कि कहीं मैं उसे खो ना दूँ, हर दिन, हर लम्हा, हर साल मैं उसी डर में जीता चला गया, और कुछ यूँ मैं उसकी यादों का ग़ुलाम बना रहा, ये सोच कर की कहीं ना कहीं, कभी ना कभी उसे ये एहसास होगा की कितना कुछ सहा है मैंने अपनी इस ज़िंदगी में, फिर एक दिन उसने मुझसे पूछा की क्या करते तुम अगर तुम्हें मना हो जाता मुझसे शादी को, उस पल को लगा की शायद ये वही पल है जिसका मैं बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था, उस एक लम्हे में मैं ख़ुद में ही नहीं तय कर पा रहा था कि क्या जवाब दूँ, अगर वो कैफ़े ना होकर कोई अकेली जगह होती तो शायद मैं रो पड़ता लेकिन ये नसीब मेरा कहाँ, फिर एक दिन उसने मुझे बताया कि कैसे जो सब हो रहा था वो सब छल जैसा था, जो डर मुझे लगभग मेरी आधी जवानी भर सताता रहा, वो तो एक साकार रूप ले चुका था, उसने बताया की कैसे उसने मेरी आत्मा की बोली लगाई, और फिर कैसे उसने मुझे किसी और के लिए ग़ैर कह दिया, खैर,मुझे उम्मीद है की मेरी आत्मा की नीलामी की क़ीमत अच्छी खासी मिली होगी, हालाँकि दर्द तो असहनीय था लेकिन उस दिन मैं ये समझ नहीं सका की ये वो लम्हा था जैसे किसी ऊँचाई से बेइंतहान डरने वाले इंसान को किसी हवाई जहाज़ से फेंक दिया जाये, उस वक़्त शायद वह डर से पेशाब कर दे, परंतु जब वो अपनी आँखें खोलेगा तो पायेगा की ये डर तो बस छनिक मात्र था जिसके लिए वो ज़िंदगी भर डरता रहा, वो आसमान से दिखती हुई धरती कितनी खूबसूरत है, पहाड़, नदी, और वो घर सब कितने खूबसूरत हैं, और भगवान पे भरोसा है मुझे अगर कोई मुझे इतनी ऊँचाई से फेंकेगा तो वो मुझे पैराशूट जरूर देंगे. मैं शुक्रगुज़ार हूँ उनका जिन्होंने मुझे ऊँचाई से फेंका, इतना अरसा बीत गया आज़ाद महसूस किए. आज मैं अपनी उस ज़िंदगी का हिस्सा पढ़ पा रहा हूँ जिसे मैं अब तक नहीं पढ़ पाया था. ख़ुशी मुझमें और मेरे आस पास में ही छुपी बैठी थी और मैं उसे उनमे तलाश रहा था जिनके लिए हम खिलौना मात्र थे, आधी ज़िन्दगी भर एक मुहावरे के पीछे भागता रहा की जो अपना था वो कहीं जाएगा नहीं , और जो चला गया वो अपना था ही नहीं, हमेशा उसके पहले वाक्य पे ध्यान दिया, जबकि दूसरा वाक्य सब कुछ साफ़ साफ़ बयान करता रहा, लेकिन मैं इश्क़ में अंधा सिर्फ़ अपने दिल के बनाये आईने में झांकता रहा, तो फ़िलहाल मुझे ना चाँद बनने की ख्वाहिश है और ना ही बरसात, मैं एक आम आदमी की भांति अपना पैराशूट लेकर ज़मीन पे ही रहना चाहता हूँ, सभी को ख़ुश और आबाद देखना चाहता हूँ, और प्रार्थना करता हूँ की जो मुझे जितना दूर देखना चाहते थे भगवान उन्हें मुझसे उतना ही दूर और सही सलामत रखें, मैंने जिसके लिए जितना किया उसके लिए मुझे कोई खेद नहीं है, निस्वार्थ भाव से जितना किया जा सकता था, बन पड़ा किया, और आशा करता हूँ की भगवान उन्हें उसी भाव से हमेशा मेरे रहते, ना रहते देते रहेंगे. मैं शुक्रगुजार हूँ उसका की उसने मेरा किस तरह साथ दिया, और उसने मुझे इस क़ाबिल बनाया की मैं जो उसके रहते ना देख सका उसके जाने के बाद देख लिया. उसे कविताओं से काफ़ी लगाव था तो शायद हरिवंश राय बच्चन जी की ये कविता जिसने मुझे जगाया वो शायद आज के दिन के लिए ही थी जो यहाँ लिखी जानी थी और वो ये थी----
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उसपर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझायी कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझायी फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठतें हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई
- हरिवंश राय बच्चन
जहाँ रहो ख़ुश रहो, और देखो तुमने भी मुझे यही कहा था और आज मैं जैसा भी हूँ बहुत ख़ुश हूँ।
अलविदा
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